Bound by Force, Destroyed by Betrayal - 1 in Hindi Love Stories by khushi books and stories PDF | Bound by Force, Destroyed by Betrayal - 1

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Bound by Force, Destroyed by Betrayal - 1



रात अपने पूरे शबाब पर थी. शहर का सबसे पॉश और एक्सक्लूसिव बैंक्वेट हॉल, हज़ारों जगमगाती लाइट्स में नहाया हुआ था.

यहाँ चल रही थी एक ऐसी ग्रैंड पार्टी, जहाँ दौलत, रुतबा और नामचीन हस्तियाँ एक ही छत के नीचे जमा थीं. हवा में महंगे परफ्यूम्स की महक घुली हुई थी और हर कोने से आ रही थी हँसी, कानाफूसी और सफल लोगों की धीमी गुफ्तगू की आवाज़ें.

इस चमकती भीड़ में दो ऐसे परिवार भी थे, जिनके बीच सिर्फ़ दौलत और रुतबे की ही नहीं, बल्कि पुश्तैनी दुश्मनी की भी एक लंबी हिस्ट्री थी.

ये थे राठौर खानदान और वर्धन खानदान.

राठौर खानदान – उनका नाम ही एक अलग ग्रेस और डिग्निटी के साथ लिया जाता था. वे बेशक अकूत संपत्ति के मालिक थे, लेकिन उनकी पहचान थी उनकी सादगी, ऊंचे संस्कार और बिज़नेस में उनकी एथिकल अप्रोच.

पार्टी में भी वे अपनी इसी पहचान को रिफ्लेक्ट कर रहे थे. राजेंद्रनाथ राठौर, परिवार के सबसे बड़े और सम्मानित सदस्य, जिन्हें हर कोई 'दादाजी' कहता था, अपने रौबदार अंदाज़ और गहरी सोच के लिए जाने जाते थे. उनकी आँखें हर चीज़ को बड़ी बारीकी से देखती थीं. उनके बगल में थीं सुमित्रा देवी, 'दादीजी', जिनकी सौम्य मुस्कान और शांत स्वभाव ने हमेशा परिवार को एक साथ बांधे रखा था.

उनके बेटे और राठौर कंस्ट्रक्शन्स के कर्ता-धर्ता, आशीष राठौर यानी 'चाचाजी', अपनी पत्नी अंजलि राठौर ('चाचीजी') के साथ बैठे थे. उनके दो छोटे बच्चे, शरारती नील और प्यारी सी सान्वी, पास ही खेल रहे थे.

और फिर थी सीमा राठौर, जो अपनी शांत प्रकृति और बेदाग़ चरित्र के लिए जानी जाती थीं. उनके साथ उनके पति, अशोक राठौर, एक सफल बिज़नेसमैन, और उनका बड़ा बेटा, वीर राठौर, जो अब परिवार के बिज़नेस में अपनी जगह बना रहा था, मौजूद थे.

सीमा जी हमेशा चुप रहकर सिचुएशन्स को हैंडल करती थीं, शायद यही वजह थी कि लोग उन्हें अक्सर हल्के में ले लेते थे.

वहीं, उनकी प्रतिद्वंद्वी, वर्धन खानदान. उनका अंदाज़ बिल्कुल जुदा था. वे फ्लैंबॉयंट, पावरफुल और बेधड़क थे. उनकी एंट्री ही ऐसी होती थी, जैसे पूरा हॉल उनके लिए सजग हो गया हो.

सबसे आगे थीं उर्मिला देवी, जिन्हें सब 'दादीजी' कहते थे. उनकी आँखों में एक अलग ही तेज़ था, जैसे वह हर किसी को भाँप रही हों और हर सिचुएशन को कंट्रोल करना चाहती हों. वैसे तो ये भी बहुत प्यारी है , पर उतनी ही खडूस भी .

उनके दो बेटे थे – बड़े बेटे, जिनका नाम था दीपक वर्धन, जो अब परिवार के बिज़नेस में उतने एक्टिव नहीं थे, उनका तलाक हो चुका था.

दीपक जी के बच्चे – बेटा आर्यन वर्धन (हमारा हीरो, जिसकी एंट्री अभी बाकी है) और बेटी अनीता वर्धन – साथ थे. आर्यन को तो सब जानते थे, वो अपने डैड की तरह ही हैंडसम, स्मार्ट और बेहद इंटेलीजेंट था, जिसकी मौजूदगी से ही पार्टी में एक अलग एनर्जी आ जाती थी.

उर्मिला देवी के छोटे बेटे, विवेक वर्धन, अपनी पत्नी मीनाक्षी वर्धन के साथ थे. मीनाक्षी वर्धन! उनका नाम लेते ही दिमाग में एक लाउड पर्सनालिटी और अटेंशन की भूख आ जाती थी. उन्हें हमेशा सेंटर ऑफ अट्रैक्शन बनने की आदत थी, और अगर कोई उनसे आगे निकलने की कोशिश करता, तो वह उसे नीचा दिखाने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ती थीं. उनके दो बच्चे – एक बेटा और एक बेटी – उनके पीछे-पीछे चल रहे थे.

पार्टी में माहौल घुल-मिल रहा था, लोग बातें कर रहे थे, ड्रिंक्स का आदान-प्रदान हो रहा था, जब तक कि मीनाक्षी वर्धन की पैनी नज़र सीमा राठौर पर नहीं पड़ी.

सीमा जी अपनी एक पुरानी कॉलेज फ्रेंड से शांत भाव से बात कर रही थीं और मीनाक्षी जी के लिए यह अनअक्सेप्टेबल था कि कोई उनसे ज़्यादा अटेंशन ले रहा है, खासकर सीमा राठौर.

"ओह, सीमा जी! आप यहाँ भी? मुझे लगा था कि आप तो सिर्फ़ अपनी छोटी-मोटी किटी पार्टीज़ में ही कंफर्टेबल होती हैं, या शायद आप ऐसे ग्रांड इवेंट्स में ज़्यादा सोशल नहीं होतीं?" मीनाक्षी जी ने एक बनावटी, हल्की सी स्माइल के साथ कहा, लेकिन उनकी आवाज़ में तीखापन साफ़ झलक रहा था.

सीमा जी ने मुड़कर देखा, उनके चेहरे पर थोड़ी हैरानी तैर गई. "मीनाक्षी जी! आपको देखकर अच्छा लगा," उन्होंने अपनी शांत आवाज़ में कहा, उनकी गरिमा उनके शब्दों में झलक रही थी.

"अच्छा लगा? मुझे तो नहीं लगता! और ये आपकी साड़ी... इतनी प्लेन, इतनी आउटडेटेड! क्या राठौर खानदान के पास अब इतनी भी दौलत नहीं बची कि आप कोई डिजाइनर वेअर पहन सकें? या आपको फैशन सेंस की कमी है?" मीनाक्षी जी ने अपनी बातों से उन्हें नीचा दिखाने का एक भी मौक़ा नहीं छोड़ा.

उनकी आवाज़ अब कुछ ऊंची हो चुकी थी, जिससे आसपास के कुछ लोग भी उनकी तरफ़ देखने लगे. वर्धन परिवार के दूसरे मेंबर्स भी अब इस 'तमाशे' को देख रहे थे, उनकी आँखों में एक अजीब सी सैटिस्फेक्शन थी.शिवाय दादीजी को, दीपक जी को और घर के बच्चों को  छोड़ कर.

राठौर परिवार के सभी सदस्य, खासकर अशोक राठौर और वीर, गुस्से से मीनाक्षी जी को घूर रहे थे. उनके चेहरे पर अपनी माँ/पत्नी को इस तरह अपमानित होते देख कर निराशा और गुस्सा साफ दिख रहा था.

दादाजी और दादीजी भी परेशान थे, लेकिन सीमा जी हमेशा की तरह चुप थीं. वह सिर्फ़ हल्का सा मुस्कुरा रही थीं, जैसे इस सिचुएशन से दूर जाना चाहती हों, एक कॉन्फ्रंटेशन से बचना चाहती हों. मीनाक्षी जी को सीमा जी की यह शांति और भी गुस्सा दिला रही थी. उन्हें लगा कि सीमा जी उनकी बातों को इग्नोर कर रही हैं.

"क्या बात है, सीमा जी? लगता है आपकी जुबान भी आपकी स्टेटस की तरह खो गई है. या शायद आपके पास बोलने के लिए कुछ है ही नहीं? अब तो कम से कम आपके बेटे और बेटी को तो कुछ अचीव करना चाहिए, ताकि परिवार का नाम न डूबे. आपके बेटे वीर तो फिर भी ठीक हैं, बिज़नेस संभाल रहे हैं, लेकिन आपकी बेटी कहाँ है, वैसे? क्या उसे ऐसी हाई-क्लास पार्टीज़ में आना नहीं आता, या उसे घर पर ही बिठाकर रखा है ताकि बाहर की दुनिया न देख सके? कहीं ऐसा तो नहीं कि वो इतनी डेलिकेट है कि भीड़ का सामना नहीं कर पाती?" मीनाक्षी जी की आवाज़ अब और भी तेज़ हो चुकी थी, उनकी बातों में सीधा पर्सनल अटैक था.

सीमा जी का चेहरा लाल हो गया. उनके आंखों में नमी आ गई, लेकिन उन्होंने फिर भी कुछ नहीं कहा. उनकी शांत प्रकृति और गरिमा उन्हें इस तरह के खुले झगड़े में पड़ने की इजाज़त नहीं देती थी. उन्होंने बस अपनी मुट्ठी भींची और नज़रें झुका लीं, अपने आपको अंदर ही अंदर कंट्रोल कर रही थीं.

वर्धन परिवार के चेहरों पर अब एक अजीब सी टेंशन थी, और वही मीनाक्षी जी के चेहरे पर एक तंज भरी मुस्कान. राठौर परिवार के सभी सदस्य गुस्से से भर चुके थे, उनका खून खौल रहा था. वे अपने परिवार के सदस्य को यूँ अपमानित होते नहीं देख सकते थे, लेकिन सीमा जी की चुप्पी ने उन्हें बांध रखा था, वे जानते थे कि सीमा जी ऐसे मौकों पर कभी पलटवार नहीं करतीं.

तभी, हॉल के दूसरे कोने से एक आवाज़ गूंजी. यह आवाज़ किसी तूफान से कम नहीं थी, जिसमें रौब था, आत्मविश्वास था और एक अजीब सी अथॉरिटी थी. यह आवाज़ इतनी क्लियर और दमदार थी कि पार्टी में चल रही हल्की फुल्की आवाज़ें भी अचानक शांत हो गईं. हर किसी की नज़र उस आवाज़ की दिशा में मुड़ गई.

"जिस बेटी को आप डेलिकेट समझकर घर बिठाने की बात कर रही हैं, वो यहाँ है. और रही बात क्लास की, मिसेज वर्धन, तो मेरा मानना है कि क्लास पैसों से नहीं, बल्कि ज़ुबान और अटिट्यूड से आती है. और कुछ लोगों के पास इन दोनों में से एक की भी कमी नहीं होती."

यह आवाज़ किसी और की नहीं, बल्कि हमारी हीरोइन की थी.

पार्टी में एकदम सन्नाटा छा गया. हर कोई चौंक गया था. मीनाक्षी वर्धन का मुँह खुला का खुला रह गया था, उनका विजयी भाव पल भर में गायब हो चुका था. वर्धन परिवार के चेहरे पर भी हैरानी थी.

और ये आवाज सुन के तो मानो राठौर खानदान के हर शख्स के चेहरे पर खुशी आ गई थी.

कौन थी यह लड़की जो इतनी बेबाकी से बोल रही थी?
क्या यह सिर्फ़ एक शुरुआत थी या इस रात का कोई गहरा राज़ छिपा था?

क्या राठौर और वर्धन खानदान की दुश्मनी अब एक नए और खतरनाक मोड़ पर पहुँच चुकी थी?
यह कैसा लगा? क्या यह आपके विज़न के करीब है? हम आगे क्या करें, हीरोइन का अपरेंस डिस्क्राइब करें या सीधे उसके और मीनाक्षी चाची के बीच के कॉन्फ्रंटेशन पर जाएँ?